Thursday 31 January 2013

diary of udaibhan mishra

आज घर में रहा .कहीं बाहर नहीं गया. लिखने और प्रकाशन के बारे में लगातार सोचता रहा.  सोचने से कुछ नहीं होता ,प्रयत्न  करना  होगा . कल्पना  बुरी चीज़ नहीं है  लिन्तु उसे कर्म में बदलना  जरूरी  होता है .कविता में और बहुत कुछ  कहानी, निबंध  में कल्पना की अहम् भूमिका होती   है  किन्तु वहाँ भी अनुभूति  की गहनता , तथ्यों से साक्षात्कार और शोध की जरूरत होती है
जीवन में मुझे आज तक जो कुछ भी  यश मान सम्मान मिला है वह अपने आप  मिला है . आज जब मैं पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो मुझे दिखाई दे रहा है कि कि
सी के लिए मैंने कोई प्रयत्न नहीं किया है  चीज़े अपने आप  मेरी गोद में गिरती गई हैं . अगर मैंने किसी चीज़  के लिए जोड़ तोड़ की है या प्रयत्न किया है तो वह
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चीज़ मुझ से दूर भागती  गई है .

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