ठंढ का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है . रचना सृजन का भी एक समय होता है . जरूरी नही कि हर समय लिखा ही जाय साहित्य का जगत बहुत क्रूर होता है . रचनाओ का पहाड़ खडा करने वाले लेखक को साहित्य देवता पल भर में धूल और की तरह हवा में उड़ा कर फेंक देते हैं और एकाध रचना के लेखक को अपने मुकुट में लगा कर सदा सदा के लिए महत्वपूर्ण बना देते हैं. मात्र एक कहानी लिख कर ही कोई लेखक साहित्य में अपना स्थान बना लेता है और कोई पोथा का पोथा लिख कर भी कहीं स्थान नही बना पाता है .इधर दो एक महीनो से मैं कुछ नहीं लिख रहा हूँ क्यों ? मैं खुद नही जानता
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