Saturday 29 December 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: चलो घर चलें----------------बहुत घूम लियातुमने उदय...

Udai Bhan Mishra ka Prishtha:
चलो घर चलें----------------बहुत घूम लियातुमने उदय...
: चलो घर चलें ---------------- बहुत घूम लिया तुमने उदयभान एक  शहर से दूसरे शहर देख लिए तुमने कितने सूर्योदय और कितने स...

चलो घर चलें
----------------
बहुत घूम लिया
तुमने उदयभान
एक  शहर से
दूसरे शहर


देख लिए तुमने
कितने सूर्योदय
और कितने सूर्यास्त


अब तो विश्राम करो
समय के पतझर में


जिस घर   से  निकले थे
उस घर के दरवाज़े
बेचैनी से कर रहें हैं
तुम्हारा इंतज़ार
चलो  अब घर  चलें

Monday 10 December 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: KAAMTANATH releasing ' kahani sirf meri hi nahin '...

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: KAAMTANATH releasing ' kahani sirf meri hi nahin '...: कामतानाथ नहीं रहे -यह सुनना बहुत ही दुखद है . मेरा उनका लगभग पचास वर्षो का साथ था . हम १९६४ में दिल्ली में पहली बार मिले थे . वे सपरिवार ...

KAAMTANATH releasing ' kahani sirf meri hi nahin ' an autobiography of UDAIBHAAN MISHRA

कामतानाथ नहीं रहे -यह सुनना बहुत ही दुखद है . मेरा उनका लगभग पचास वर्षो का साथ था . हम १९६४ में दिल्ली में पहली बार मिले थे . वे सपरिवार दिल्ली भ्रमण पर  आये थे . उस समय मेरी पत्नी जीवित थी .हम दोनो परिवार साथ साथ घूमते रहे . साथ में स्वर्गीय कथाकार रामनाथ शुक्ल भी थे . कामतानाथ का जाना जहाँ हिंदी जगत की एक अपूरणीय क्षति है वही मैंने अपना एक परम आत्मीय मित्र खो दिया है . कामतानाथ समसामयिक साहित्य जगत के संभवतः अकेले ऐसे लेखक थे ,जिनकी आत्मा गरीबों ,दलितों और संघर्ष करने वाली मानवीय चेतना में बसती थी . वे भीतर से भरे और तपे हुवे  दृढ व्यक्तित्व थे - इसी लिए वे ट्रेड यूनियन नेता के रूप में अपनी प्रिय और उदार छवि प्रतिष्ठित कर सके थे . . अपनी विनम्र, शांत और सारगर्भित स्वभाव के कारण वे हर मिलने वाले को अपनी और आकर्षित कर लेते थे . मोहन राकेश, निर्मल वर्मा ,मार्कंडेय कमलेश्वर ,राजेंद्र यादव सभी के बीच से उन्होंने अपनी एक मौलिक राह बनायी थी . मुझे याद है जब उनका उपन्यास 'काल कथा' प्रकाशित हुवा था पूरे हिंदी जगत में हलचल मच गया था . साहित्य और समाज की हर धड़कन को अपनी धड़कन बना लेने वाले अमर कथाकार कामतानाथ को मेरा शत शत प्रणाम .     
जन्म- २२ सितम्बर १९३४, लखनऊ /   शिक्षा- लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में पराश्नातक ,//  उपन्यास- कालकथा (दो भाग ) , समुद्र पर खुलने वाली खिड़की , सुबह होने तक , तुम्हारे नाम , एक और हिंदुस्तान ,पिघलेगी बर्फ ,///////// कहानियां, कहानी संग्रह - छुट्टिया ,सब ठीक हो जायेगा ,शिकस्त , रिश्ते नाते ,दाखिला डाटकाम ,सोवियत संघ का पतन क्यों हुआ ./////नाटक- कल्पतरु की छाया ,दिशाहीन ,फूलन ,भारत भाग्य विधाता ,वार्ड नंबर एक ,इब्सन के नाटक 'घोस्ट' का 'प्रेत' शीर्षक से अनुवाद , मोपासा की कहानियों पर आधारित औरतें .// पुरस्कार - पहल सम्मान ,मुक्तिबोध पुरस्कार ,यशपाल नामित पुरस्कार , साहित्य भूषण , महात्मा गाँधी सम्मान;;//////निधन- ०७-१२-२०१२,,,  

Sunday 18 November 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: Udai Bhan Mishra ka Prishtha: what critics say abo...

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: Udai Bhan Mishra ka Prishtha: what critics say abo...: Udai Bhan Mishra ka Prishtha: what critics say about Udaibhan Mishra : केदारनाथ अग्रवाल, अजित  कुमार,  दुष्यंत तथा दूधनाथ सिंह की कविताओ से ...

naya geet (new lyrics)

नया गीत
जब मैं 'नया गीत' शब्द कहता हूँ तो इसे 'नयी कविता' के वजन पर  नहीं  ले रहा, यह बात मैं पहले ही साफ कर देना चाहता हूँ | कोई  भी कला-आन्दोलन परिवर्तन और संक्रांत चेतना से सम्बद्ध होता हैं | कुछ एसी परिस्थितियां  कलाकार कवि के इर्द गिर्द थी, कुछ ऐसी  उठती गिरती लहरे थी, जिनमे कविमन डूब-उतरा रहा था, कुछ ऐसे  छिलके थे जो उतर चढ़ रहे थे, जो कलाकार के व्यक्तित्व को कभी बेदर्द और कभी पर्दानशीन कर रहे थे जिससे कवि कविता की स्वीकृत परम्परागत शर्तो और मर्यादाओं  को छोड़कर अपनी अनुभूतियों  को एक नये लहजे, एक नये अंदाज में कहने लगा था, जिसे कहने वालो ने कभी प्रयोगवादी कविता कहा था, जो बाद को नई कविता कही जाने लगी |
पहले की कविता लीजिये और आज की एक सफल नयी कविता लीजिये, दोनों का अंतर, अनुभूति और बोध के स्तर पर साफ दीख जायेगा | 'नयी  कविता' नाम से पुकारी जानेवाली कविता अपने बोध और अनुभूति के परिवर्तन कोण और भिन्न चेतना-स्तरों के कारण पुरानी कविता से आसानी से अलग हो जाती है | यही शर्ते, 'नया गीत' के साथ भी हैं | इसके भी गुण नितांत नयी कविता के गुण है | अत: 'नया गीत' जैसे शब्द की सार्थकता 'नयी कविता' के अभिन्न अंग के रूप में, सामने आने में है | नयी कविता के समानांतर या उससे भिन्न उसका कोई विभाजन उचित नहीं जान पड़ता |
जो नयी कविता लय को ही अनिवार्य शर्त मानकर अपने लिए रूढबद्ध संगीत से अलग हट कर एक मुक्त संगीत को जन्म देती है वह अपनी गेयता और लयात्मकता के आधिक्य के कारण  'नया गीत' की संज्ञा पाने की अधिकारिणी होती है | केदारनाथ सिंह, ठाकुर प्रसाद सिंह, केदार नाथ अग्रवाल या रामदरश मिश्र के गीत जिन्हें 'नया गीत' के नाम से मैं पुकारता हूँ, सचाई यह है की वे 'नयी कविता' के अंतर्गत आते हैं और उनके जन्म के लिए वे ही परिस्थितिया और वे ही बोध जिम्मेदार हैं जो 'प्रयोगवाद' या 'नयी कविता' के लिए भी है | शब्द चमत्कार और रूपगत अटपटे प्रयोगों के बल पर कवि सम्मेलनी  कवि जब अपने गीतों को 'नव गीत' के नाम से पेश करते है तो लगता है 'आधुनिकता' और 'नयेपन' का स्वरूप और बोध उनकी पकड़ से कही बाहर हो गया है |
चूँकि नयी कविता का जन्म ही परिवर्तित समसामयिक  जीवन और नये वातावरण के कारण हुआ है इसलिए 'नया गीत' आधुनिक से सीधे सम्बद्ध हैं 'आधुनिक' पुराने संदर्भ में रख कर उसका परीक्षण करती है, उसकी उपयोगिता पर शान चढाती है, और मूल्यों से नए मूल्यों को  निकालती है | कहना न होगा की 'परम्परा की खोज' का कार्य नया गीत कर रहा है | लोकधुनों की ओर मुड़ना नये गीत का अपनी परम्परा की ओर मुड़ना है | जन गीतों की परम्परा की खोज नये गीत का लक्ष्य है | यह बात कसरत करके (नवगीत) लिखने वाले कवि सम्मेलनी कवि नहीं समझ पा रहे हैं| काश! उन्हें निराला, केदार अग्रवाल, ठाकुर प्रसाद सिंह जैसे कवियों के ऐतिहासिक  कार्य का महत्व मालूम हो सकता! आज के जटिल और संकटग्रस्त वर्तमान के बीच  भी गति की सम्भावना है और सदा सदा अक्षुण है, फिर भी 'गीत' आज की समग्र काव्याभिव्यक्ति का स्थान नहीं ले सकता | गीत एक मन: स्थिति  विशेष के किसी विशिष्ट क्षण को उसकी अधिकतम तीव्रता में व्यक्त करता है | इसीलिए गीत में स्फीति के लिए गुंजाइश नहीं होती | प्रभाव पर भी कवि की दृष्टि नहीं होती, सिर्फ दृष्टि  होती है अभिव्यक्ति की सम्पूर्णता पर | कवि अपने मनोवेग को पूर्ण निष्ठा के साथ उतनी ही पंक्तियों में व्यक्त करता है जितनी पंक्तिया उस अभिव्यक्ति के लिए अत्यंत अनिवार्य होती हैं| किसी लम्बी कविता या कविता में कवि की दृष्टि अंतिम रूप से 'प्रभाव' पर होती है 'समग्रता का प्रभाव' ही वहा कवि-समर्थ की कसौटी बनता है| 'विनय पत्रिका' के किसी पद को उसकी एकाग्रता तन्मयता, और रागात्मकता के कम या आधिक्य से जांचेंगे जबकि 'मानस' को उसकी व्यापकता, प्रभावकारिता, कल्याणकारिता आदि की कसौटी पर कसेंगे 'नयी  कविता' और 'नया गीत'   समान  परिस्थितियों, और समान सन्दर्भ से जन्म के बाद भी उपयोगिता की दृष्टि से एक दूसरे से अलग व्यक्तित्व रखते हैं 'नयी कविता' नये गीत का स्थान नहीं ले सकती और न नया गीत नयी कविता का | फिर भी दोनों अभिन्न है| नया गीत, नयी कविता ही है, उससे स्वतंत्र कोई विधा नहीं और 'नए गीतों का कोई भी संकलन निकालना, सिर्फ नयी कविता की लयात्मक क्षमता, परिवर्तन गेयता और स्फूर्जित चेतना की एक झलक पाने का प्रयास मात्र होगा| नये गीत को नयी कविता से अलग हट कर उसे स्वतंत्र रूप में प्रतिष्ठित करने का कोई भी प्रयास उचित नहीं|
                - उदयभान मिश्र

Friday 16 November 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: what critics say about Udaibhan Mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: what critics say about Udaibhan Mishra: केदारनाथ अग्रवाल, अजित  कुमार,  दुष्यंत तथा दूधनाथ सिंह की कविताओ से जो परिचित है वे जानते हैं की अदायगी की सहजता और सूक्ष्मता दो परस्पर गु...

what critics say about Udaibhan Mishra

केदारनाथ अग्रवाल, अजित  कुमार,  दुष्यंत तथा दूधनाथ सिंह की कविताओ से जो परिचित है वे जानते हैं की अदायगी की सहजता और सूक्ष्मता दो परस्पर गुण होती हुई भी, एक साथ नयी  कविता  की अभिव्यक्तिगत विशेषताये बनी हुई हैं उदयभान ने इन कवियों की उस भूमि को थोड़ा  और आगे बढ़ कर समर्थित किया है 

                                                                                 - गोपाल उपाध्याय

     
जिस समय नयी कविता के नाम पर यहाँ वहाँ कूड़ा-करकट बिखेरा जा रहा हो इस प्रकार की कविताओं का आगमन शुभ है| आपकी कवितायेँ स्वस्थ हैं, मांसल हैं, ताजी हैं|
                                                                               - श्रीकांत वर्मा
 
     

Thursday 15 November 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: what critics say about udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: what critics say about udaibhan mishra: हिंदी में क्षणों की अनुभूतियो को लेकर बहुत सी मर्मस्पर्शी और विचार प्रेरक कविताये लिखी गयी है ये कविताये कुछ क्षणों का, लघु प्रसंगों का, लघ...

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: what critics say about udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: what critics say about udaibhan mishra: हिंदी में क्षणों की अनुभूतियो को लेकर बहुत सी मर्मस्पर्शी और विचार प्रेरक कविताये लिखी गयी है ये कविताये कुछ क्षणों का, लघु प्रसंगों का, लघ...

what critics say about udaibhan mishra

हिंदी में क्षणों की अनुभूतियो को लेकर बहुत सी मर्मस्पर्शी और विचार प्रेरक कविताये लिखी गयी है ये कविताये कुछ क्षणों का, लघु प्रसंगों का, लघु दृश्यों का चित्रण नहीं करती, बल्कि कुछ संगत और असंगत बिम्बों के माध्यम से क्षणों की परिधि में उफनते जीवन की संश्लिस्त्तता मूर्तिमान कर देती है ये कविताये आकार में छोटी होती है और प्रभाव में अत्यंत तीव्र  यों तो प्राय: सारे नये कवियों ने इस प्रकार  की कविताये लिखी है, परन्तु विशेष रूप से अज्ञेय, कुवर नारायण, नरेश मेहता, उदयभान मिश्र, श्रीकांत वर्मा, केदार अग्रवाल की कवितायेँ  देखी जा सकती है |

बंद कमरो में
धुप के पंख फड़फडाते है
बाहर
हवा
फूल के गुच्छे हिलाती
दरवाजा तोड़ने को
बेताब है
उदयभान मिश्र - 'सिर्फ एक गुलाब के लिए' से डा रामदरश मिश्र की किताब 'हिंदी कविता तीन दशक के पृष्ट ११२ से

नया गीत

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naya geet (new lyrical poetry) by udaibhan mishra

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Sunday 14 October 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra: -- अस्पताल से  घर आने के बाद  धन्यवाद उन्हें जिन्होंने पूछा आप कैसे हें धन्यवाद उन्हें जो मुझे देखने अस्पताल आए ...

Saturday 13 October 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra: -- अस्पताल से  घर आने के बाद  धन्यवाद उन्हें जिन्होंने पूछा आप कैसे हें धन्यवाद उन्हें जो मुझे देखने अस्पताल आए ...

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra: -- अस्पताल से  घर आने के बाद  धन्यवाद उन्हें जिन्होंने पूछा आप कैसे हें धन्यवाद उन्हें जो मुझे देखने अस्पताल आए ...

poem of udaibhan mishra


--
अस्पताल से
 घर आने के बाद

धन्यवाद उन्हें
जिन्होंने पूछा
आप कैसे हें
धन्यवाद उन्हें
जो मुझे देखने
अस्पताल आए

धन्यवाद उन्हें
जिन्होंने सुझाव दिए
दवा,डाक्टर,खानपान
के बारे में


धन्यवाद  उन्हें
जो लगातार 
शुभकामनाओं की
 अमृत वर्षा
करते रहे मुझ पर

यह अमृत जल ही
मनुष्य होने का
प्रमाण है       

Monday 30 July 2012

poem of udaibhan mishra

मेरा अनुभूत सत्य आपका भी अनुभूत सत्य हो कोई  जरूरी नहीं, फिर भी  मेंरे सत्य को अगर आप सत्य  मानने  से इन्कार  करेंगे तो  मुझे  लगेगा  आप  मेरे साथ न्याय नहीं  कर रहें हें.जल  के ऊपर  तैरता हुवा हिम  ऊपर जितना दिखाई पड़ता है वह उतना ही नहीं होता,वह तो संपूर्ण  का मात्र दसवाँ हिस्सा होता है. इस लिए सत्य ऊपर  का कुछ और भीतर का कुछ और होता है . जो मेरा  परिवेश है , उससे अलग हट कर भी  या बाहर भी एक संसार  है  जो इस दृश्यमान संसार से  जुड़ता हुआ  भी नहीं जुडा हुआ है ,जब इस भीतर के संसार के यथार्थ से मैं जुड़ता हूँ तो  सहसा सब कुछ  मेरे लिए  बदल  जाता है . फूल ,रंग ,धूप , हवा ,-सबके अर्थ वे नहीं रह  जाते जो साधारण स्थिति में साधारण  व्यक्ति के लिए होते हें . प्रत्यक्ष और दृश्यमान झूठा पड़ जाता है और जो प्रत्यक्ष नहीं है , जो कहीं दिखाई नहीं पड़ता  वह सहसा सत्य उठता है. पीले फूलों वाला मौसम , बसंत का मौसम न हो कर षड्यंत्र  और घृणा का मौसम हो जाता है परिवेश एक भयानक जंगल  में  बदल जाता है और जगह  जगह झाड़ियों  में दुबके , छिपे  शेर  और जंगली खूंखार जानवर  दिखाई पड़ने लगते हें./  इस संक्षिप्त संकेत के साथ  प्रस्तुत है मेरी एक कविता----------------------------------------------------------
आग  के पहाड़ पर
बैठा हुआ है  देश
और मेरे मित्र
मूर्खों की जय - जयकार  कर रहे हें

मित्र
जिन्होंने पाए हें 
बेहतरीन  दिमाग
खुली आँखें
मज़बूत  हाथ
वे  कहीं न  कहीं
या तो
किसी लाक्षागृह में
 कैद  हें
या
किन्ही लाक्षा गृहों का
निर्माण कर रहे  हें

आश्रम के हिनहिनाते अश्व
कुलांचें  भरते  मृग शावक
फुदकती चिड़ियाएँ
लहरती घासें
लताएँ
सभी की सभी
उपज हें
एक माया  की

ऋषि
जो सक्षम  हें
आश्रम का भक्षण  कर  के भी
आश्रम को
आश्रम सा दिखाने में
 उनके आतंक से
काँप रहा  है  सारा जंगल
और मेरे  मित्र
जो  इस सदी के गर्व हें
हां दुर्भाग्य
वे भी खिचते चले जा रहे  हें 
उसी आश्रम की ओर
----------------------------------शेष अगले  पुसर  में  

Monday 23 July 2012

about udaibhan mishra

आज अपने समय की एक चर्चित पत्रिका "उत्कर्ष"  का मार्च १९९२  का अंक  सामने आ  गया लखनऊ से .प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका के सम्पादक  हिन्दी  के  प्रसिद्ध लेखक गोपाल उपाध्याय  थे .वे अब इस संसार में नहीं हें.उनका प्रसिद्ध  उपन्यास "एक टुकड़ा इतिहास:"  एक महत्वपूर्ण उपन्यास है.उन्होंने इस पत्रिका के उक्त अंक में मेरी कविताओं को प्रकाशित करते हुए  सक टिप्पणी लिखी है .उन्होंने लिखा है  की ------


उन दिनों उदयभान कलकत्ता से " समीक्षक" निकालते थे  और  हिन्दी साहित्य के खोटे  सिक्कों और  नककालों को जड़ से  उखाड़  फेंकने की घोषणा  करते फिरते  थे . उन दिनों वह स्वभाव  से सैनिक  और लेखनी से श्रमजीवी  थे .फिर उसके बाद उदयभान  कलकत्ता से दिल्ली चले आये.एक सरकारी नौकरी में, मगर  उनका तेवर वही रहा.| वहाँ भी उनकी पटरी उनसे नहीं बैठी, जो समझौतावादी थे या अवसरवादी थे|     अपनी तेज तर्रार  साहित्यिक टिप्पणियों और आलोचनाओं के जरिये  साहित्य के घुस्पैथिओंके साथ  उनका युद्ध आज भी जारी है. इसी लिए साहित्यिक जलसों और जुलूसों  में उदयभान अक्सर क्रुद्ध और अकेले  दिखाई पड़ते है,मगर इस क्रोध  और अकेलेपन को  सृजनके स्तर पर अनुभव कर के वे ऐसी रचनाओं को जन्म  देते हें जो अर्थहीनता के बीच अर्थ के सन्दर्भ को उदघाटित करती है उदयभान का कलाकार अन्धकार की   सार्थकता की खोज करता है.और खोज  की यह प्रक्रिया ही उनके कलाकार की नियति भी है और अर्थवत्ता भी.  उदयभान इस पीढी के एक समर्थ  कवि हें उत्कर्ष में पहले भी वे अपनी कविताओं के साथ आते रहे हें, वकतव्य के साथ प्रस्तुत हें  उनकी कवितायें          नोट--कवितायें मैं अगले किसी पोस्ट में दूँगा. आज इतना ही---------उदयभान मिश्र

Sunday 22 July 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra:  आलोचक  को  समर्पित एक कविता  उनके मन में जो भी आयेगा कहेंगे मंच दिया है उन्हें   दहेंगे पढ़ने से रिश्ता कम बोलने से ...

poem of udaibhan mishra

 आलोचक  को  समर्पित एक कविता 

उनके मन में
जो भी आयेगा
कहेंगे

मंच दिया है उन्हें 
दहेंगे
पढ़ने से रिश्ता
कम
बोलने से ज्यादा है
उनका
दशकों पुरानी
कसौटी पर
कविता तुम्हें
कसेंगे

कविता!
घबराना मत
वे आलोचक हैं
पूज्य हैं
उन्हें प्रणाम् करो
-----------------------उदय भान मिश्र

Friday 13 July 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra: चीखती  है  चीखती है  कब नदी कब बदलती है धार कौन सी नाव किधर ले जाती है माझी  ही  केवल  जानता  है नदी  का  बहाव  --...

poem of udaibhan mishra

चीखती  है 
चीखती है 
कब नदी
कब बदलती है
धार
कौन सी नाव
किधर ले जाती
है
माझी  ही 
केवल 
जानता  है
नदी  का  बहाव 
----------------------उदयभान मिश्र  
                                                                             

Thursday 12 July 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra

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Wednesday 4 July 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: review of udaibhan mishra ka rachana sansar

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: review of udaibhan mishra ka rachana sansar: कल  मुझे :: सखी  पत्रिका  का जुलाई 2012 का अंक मिला  इस  पत्रिका  का यह विशेषांक  है  जागरण समूह  कानपूर और दिल्ली   का यह प्रकाशन है  इसके...

review of udaibhan mishra ka rachana sansar

कल  मुझे :: सखी  पत्रिका  का जुलाई 2012 का अंक मिला  इस  पत्रिका  का यह विशेषांक  है  जागरण समूह  कानपूर और दिल्ली   का यह प्रकाशन है  इसके  पृष्ठ  68 पर श्री  रामदरश  मिश्र  द्वारा  सम्पादित  मेरी रचनाओं  की पुस्तक उदयभान मिश्र  का रचना संसार की समीक्षा  प्रकाशित  हुई  है  यह पत्रिका  कोई साहित्यिक  पत्रिका नहीं  है  किन्तु  इसकी पाठक संख्या  लाखों  में है  इस लिए मुझे सन्तोष  है  आखिर कोई रचना  पाठकों  के लिए ही  तो लिखी  जाती है

इस पुस्तक की कई समीक्षाएँ   प्रतिष्ठित  पत्रिकाओं  में आयी  है   कोलकता  से प्रकाशित  वागर्थ  के नवम्बर 2011 के अंक में डाक्टर बलदेव  बंसी  ने इसकी  समी  क्षा की है   अलीगढ़  से प्रकाशित  वर्तमान साहित्य  में डाक्टर  रामदरश  मिश्र  की  समीक्षा   प्रकाशित  हुयी  है , भोपाल  से प्रकाशित  समय  के  साखी के अंक 46-47  में डाक्टर महेन्द्र पाण्डेय की  समीक्षा छपी  है

मेरे इन्टरनेट के साथी  शायद  इन्हें पढना   चाहें  इसी लिए इनका  जिक्र  कर दिया
-----------------------------------------------------------------------------------------उदयभान मिश्र

Tuesday 26 June 2012

i  am  not  a politician  nor   i  am  interested in politics  but  i  dont understand why i  wish that shri pranab mukherjee should win.----------------------------------------
udaibhan mishra

Sunday 24 June 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra: shrey  maine  liya --------------- maine kya kiya tumne kiya tumne jo diya maine liya sans tumhari thee maine jiya tum...

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra: shrey  maine  liya --------------- maine kya kiya tumne kiya tumne jo diya maine liya sans tumhari thee maine jiya tum...

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra: shrey  maine  liya --------------- maine kya kiya tumne kiya tumne jo diya maine liya sans tumhari thee maine jiya tum...

poem of udaibhan mishra

shrey  maine  liya
---------------
maine kya kiya
tumne kiya
tumne jo diya
maine liya

sans tumhari thee
maine jiya

tumne likha
shrey
maine liya

--------udaibhan mishra




Thursday 7 June 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: कब तक कब तक रखोगे मुझे डाक्टर !इस  क्लोरोफोर्...

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: कब तक

कब तक रखोगे मुझे

डाक्टर !
इस  क्लोरोफोर्...
: कब तक कब तक रखोगे मुझे   डाक्टर ! इस  क्लोरोफोर्म  के नशे में आखिर तो सहनी  पड़ेगी  ही कभी न  कभी - पीड़ा  इस  घाव  की ......
कब तक

कब तक रखोगे मुझे 

डाक्टर !
इस  क्लोरोफोर्म  के नशे में

आखिर तो

सहनी  पड़ेगी  ही


कभी न  कभी
-

पीड़ा  इस  घाव  की

...................................उदयभान मिश्र  

Tuesday 1 May 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: o my viewers!

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: o my viewers!:         for last about two months i was away from my native place_ gorakhpur. so i could not sit on computer to write my blog.now i have co...

o my viewers!

        for last about two months i was away from my native place_ gorakhpur. so i could not sit on computer to write my blog.now i have come back and wish to send my poems which i have written recently, but you have to wait for some  two or three days--udaibhan mishra

Saturday 18 February 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: POEM OF UDAIBHAN MISHRA

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: POEM OF UDAIBHAN MISHRA: दर्पण ------------ दर्पण दर्पण को खा रहे हैं लोग खुद से घबरा रहे हैं .................... उदयभान मिश्र

POEM OF UDAIBHAN MISHRA

दर्पण
------------
दर्पण दर्पण को
खा रहे हैं
लोग
खुद से
घबरा रहे हैं 
....................उदयभान मिश्र

Wednesday 8 February 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha:

Udai Bhan Mishra ka Prishtha:

diary dated08-02-2012

आज गोरखपुर में मौसम का मिजाज़ सहसा बदल गया . मूसलाधार पानी और ठण्ड . इसी नौसम में जाने माने गीतकार गिरधर करुण के  साथ शहर में  निकला - हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि श्री  केदार नाथ सिंह  से मिलाने के लिए . वे दिल्ली से आये हैं और देवरिया जाते हुए आज इस शहर में हैं .उनके साथ करीब दो घंटे रहा . इस बीच उन्होंने हमें तनिक भी एहाशास  नहीं होने दिया  कि हम एक राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध वरिष्ठ कवि और साहित्यकार  के साथ बातें कर रहें हैं . वे पूर्वांचल  की माटी के सपूत हैं   यहाँ के गावं के एक साधारण  आदमी  की तरह वे बातें करते रहे . लोग मिलने पर अपनी महिमा का बखान करने लगते हैं . इसके विपरीत उन्होंने अपने बारे में एक शब्द भी नहीं कहा  , भोजपुरी में बातें करते रहे उन्हें याद करते हुए मैं घर आया

Monday 6 February 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: POEM OF UDAIBHAN MISHRA

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: POEM OF UDAIBHAN MISHRA: एक क्रिकेट मैच को देखते हुए --------------- मैं जानता था कि वे हार रहे थे मैं निश्चिन्त हो कर अपने बाकी सारे कामो...

POEM OF UDAIBHAN MISHRA

एक क्रिकेट  मैच  को देखते हुए

---------------
मैं जानता  था  कि
वे हार रहे  थे

मैं  निश्चिन्त  हो कर
अपने बाकी  सारे
कामों को
निपटा  सकता  था
मगर
उन्हें हारते हुए
देखने के सुख से
वंचित होना
नहीं  चाहता था
और
टेलीविजन  स्क्रीन  पर
आँखें गडाए
हर गेंद की
करामात
देखता  रहा
सब कुछ
ताक पर  रख कर 
वे जानते थे कि
वे हार रहे हैं
फिर भी वे
हर गेंद पर
जूझते  रहे
अपनी सारी
ताकत को
झोंकते हुए
क्यों कि वे
मानते थे
कि
हार मानना ही
मृत्यु  है
...............उदयभान मिश्र

Saturday 28 January 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha:

Udai Bhan Mishra ka Prishtha:

POEM OF UDAIBHAN MISHRA

रहो तो सही
------
कुछ भी कहो
कहो तो सही

चित्र अधूरा क्यों
छोड़ रहे ?
भरो -कोई भी  रंग
भरो तो सही

मन माफिक लहर
कब  आयेगी
क्या पता
धार काट लोगे 
कूदो तो सही 
जाने का नाम 
क्यों लेते हो ?
जैसे  भी  रहो
रहो तो सही
.....................उदयभान मिश्र

Friday 20 January 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: the poem i read last week

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: the poem i read last week: last week i happened to meet one of my friends who had come from lucknow.. all the time he was talking of modern english poetry. T. S. E...

the poem i read last week

last week  i happened to meet one of my friends who had come from lucknow.. all the time he was talking of modern english poetry. T. S. ELIOTWAS IN THE CENTRE OF OUR DISCUSSION.I TOLD HIM VERY FRANKLY THAT  I WAS NOT IMPRESSED BY HIS POEM- " THE HOLLOW MEN: THIS POEM HAS IMPRESSED MANY OR OUR POETS TOD AY.WHILE I DIFFER FROM THE PHILOSPHY OF THIS POEM. I QUOTE BELOW FEW STANZAS  FOR MY FRIENDS WHO MIGHT LIKE TO SHARE MY THOUGHT.

WE ARE THE HOLLOW MEN
WE ARE THE STUFFED MEN
LEANING TOGETHER
HEADPIECES FILLED WITH STRAW,ALAS!
OUR DRIED VOICES, WHEN
WE WHISPER TOGETHER
ARE QUITE AND MEANINGLESS
AS WINS IS DRY GRASS
OR RATS FEETOVER BROKEN GLASS
IN OUR DRY CELLAR
+++++++++++++++

THIS IS THE DEAD LAND
THIS IS CACTUS LAND
HERE THE STONE IMAGES
ARE RAISED, HERE THEY RECIEVE
THE APPLICATIONOF A DEAD MANS HAND
UNDER THE TWINKLE OF A FADING STAR
       [THIS IS  A LONG POEM. I HAVE TAKEN ONLY FEW LINES TO SUPPORT MY VIEWS IN MY OPINION THIS IS THE AGE OF JOY, HAPPYNESS  ANS FULFILNSNT ANS GLORIOUS ACHIEVEMENT.

Tuesday 17 January 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan mishra: कहाँ है बसावनपुर कहाँ है बसावनपुर ? पूछा था यही प्रश्न सात अश्वों से खींचे जाते रथ के उस महारथी ने पहली बार उत्तर...

poem of udaibhan mishra

  1.  कहाँ है बसावनपुर
कहाँ है बसावनपुर ?
पूछा था  यही  प्रश्न
सात अश्वों से
खींचे  जाते
रथ के
उस महारथी  ने पहली बार

उत्तर कहाँ
मिल पाया था
अठारह  दिनों  तक
शर- शैया पर सोते हुए
उस वृद्ध  पितामह को भी

कहीं भी एक जगह
नहीं टिकनेवाले
नारद ने भी
पूछा था  यही प्रश्न
परम पिता ब्रह्मा  से एक दिन 

बोलो  पिता


कहाँ  है  मेरा  बसावनपुर ?

क्या मैं यों  ही 

Sunday 8 January 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha:  एक दिन ----तुम्हारे  नगर  से चला  जाएगा उदयभान ए...

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: एक दिन ----तुम्हारे नगर से चला जाएगा उदयभान ए...: एक दिन ---- तुम्हारे नगर से चला जाएगा उदयभान एक दिन बिछी की बिछी रह जायेंगी गोटियाँ देखते रह जायेंगे साहब ...
 एक दिन
----
तुम्हारे  नगर  से
चला  जाएगा उदयभान
एक  दिन

बिछी  की बिछी 
रह  जायेंगी गोटियाँ

देखते  रह जायेंगे
साहब
दीवान
और
प्यादे

सजती  रहेंगी
कन्याएं
अप्सराएं
मंत्रिगन
और
विदूषक

कहाँ  लगावोगे
अपने दरबार
कहाँ  रहेगी
यह सभा
कहाँ रहेगा
यह साम्राज्य 
--------------------उदयभान मिश्र  

Thursday 5 January 2012

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan midhra

Udai Bhan Mishra ka Prishtha: poem of udaibhan midhra: शाम माथे पर टिकी हुयी शाम अधरों से लगी हुयी शाम बाहों में भरी हुयी शाम पावों में नपी हुयी शाम मुझे पीत...

poem of udaibhan midhra

शाम

 माथे  पर टिकी हुयी  शाम
अधरों  से लगी  हुयी   शाम
बाहों  में भरी  हुयी  शाम
पावों  में  नपी  हुयी  शाम 


 मुझे   पीती  शाम
माती  शाम
------------उदयभान मिश्र