Wednesday, 14 December 2011

poem of udaibhan mishra

नए साल  पर

यात्राएं  
बीमारी 

गैर जरूरी  चीजों  की 
खरीददारी 
चाहे अनचाहे 
मेहमानों  का आना -जाना 
लाख  लिखने  के बावजूद 
मित्रों  के खतों का 
न  आना 


कभी  शोक 
कभी  हर्ष 
इसी  में  बीत  गया 
सारा  यह वर्ष 


बोतल  में बंद 
ईथर  की तरह 
आय 
गिरते  झरने  की तरह 
खर्च 
पाया , अब paayaa 
  

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