Sunday, 4 December 2011

poem of udaibhan mishra

आजकल

आजकल 
मैं 
एक ऐसे जंगल से 
गुजर रहां हूँ 
जिसमें 
एक दरख्त की जड़ें
दूसरे दरख्त की
जड़ें हैं



एक की पत्तियां
दूसरे की पत्तियां हैं
एक की जत्तायें
दूसरे  की जत्ताएं  हैं


मैं
एक ऐसे जंगल से
गुजर रहा हूँ
जिसमें हर दरख्त
दूसरे दरख्त पर
झुका हुआ है
हर दरख्त
दुसरे दरख्त पर
ठिका हुआ है

---------उदयभान मिश्र

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