Sunday, 22 July 2012

poem of udaibhan mishra

 आलोचक  को  समर्पित एक कविता 

उनके मन में
जो भी आयेगा
कहेंगे

मंच दिया है उन्हें 
दहेंगे
पढ़ने से रिश्ता
कम
बोलने से ज्यादा है
उनका
दशकों पुरानी
कसौटी पर
कविता तुम्हें
कसेंगे

कविता!
घबराना मत
वे आलोचक हैं
पूज्य हैं
उन्हें प्रणाम् करो
-----------------------उदय भान मिश्र

No comments:

Post a Comment