Monday 23 July 2012

about udaibhan mishra

आज अपने समय की एक चर्चित पत्रिका "उत्कर्ष"  का मार्च १९९२  का अंक  सामने आ  गया लखनऊ से .प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका के सम्पादक  हिन्दी  के  प्रसिद्ध लेखक गोपाल उपाध्याय  थे .वे अब इस संसार में नहीं हें.उनका प्रसिद्ध  उपन्यास "एक टुकड़ा इतिहास:"  एक महत्वपूर्ण उपन्यास है.उन्होंने इस पत्रिका के उक्त अंक में मेरी कविताओं को प्रकाशित करते हुए  सक टिप्पणी लिखी है .उन्होंने लिखा है  की ------


उन दिनों उदयभान कलकत्ता से " समीक्षक" निकालते थे  और  हिन्दी साहित्य के खोटे  सिक्कों और  नककालों को जड़ से  उखाड़  फेंकने की घोषणा  करते फिरते  थे . उन दिनों वह स्वभाव  से सैनिक  और लेखनी से श्रमजीवी  थे .फिर उसके बाद उदयभान  कलकत्ता से दिल्ली चले आये.एक सरकारी नौकरी में, मगर  उनका तेवर वही रहा.| वहाँ भी उनकी पटरी उनसे नहीं बैठी, जो समझौतावादी थे या अवसरवादी थे|     अपनी तेज तर्रार  साहित्यिक टिप्पणियों और आलोचनाओं के जरिये  साहित्य के घुस्पैथिओंके साथ  उनका युद्ध आज भी जारी है. इसी लिए साहित्यिक जलसों और जुलूसों  में उदयभान अक्सर क्रुद्ध और अकेले  दिखाई पड़ते है,मगर इस क्रोध  और अकेलेपन को  सृजनके स्तर पर अनुभव कर के वे ऐसी रचनाओं को जन्म  देते हें जो अर्थहीनता के बीच अर्थ के सन्दर्भ को उदघाटित करती है उदयभान का कलाकार अन्धकार की   सार्थकता की खोज करता है.और खोज  की यह प्रक्रिया ही उनके कलाकार की नियति भी है और अर्थवत्ता भी.  उदयभान इस पीढी के एक समर्थ  कवि हें उत्कर्ष में पहले भी वे अपनी कविताओं के साथ आते रहे हें, वकतव्य के साथ प्रस्तुत हें  उनकी कवितायें          नोट--कवितायें मैं अगले किसी पोस्ट में दूँगा. आज इतना ही---------उदयभान मिश्र

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