Saturday, 21 July 2012




कुहरा

कुहरे की परतों  में
दबी हुई
एक गुलाबी लडकी|

ओ ! मेरी आँखों के तेज़
तू सूरज क्यों नहीं
बन जाता

ओ! मेरी उबलती आकांछा

क्या तू
इस  गुलाबी लडकी को
कुहरे से बाहर
नहीं खीँच सकती? 

1 comment:

  1. Beautiful phrase. Expected from a genius like Dr. Udai Bhan Mishra.
    Regards
    Suresh

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