काफी हाउस के शूरमा
उनका मन रेस्तरां के संगीत में नहीं था
उनका मन किसी बातचीत में नहीं था
वे अपनी जेबों में भर भर कर
लाये थे गुब्बारे
उन्हें चुपके से फुलाते थे
और हवा में उड़ाते थे
वे संख्या नें चार थे
हर चीज पर
उनके अपने विचार थे
वे दार्शनिक थे
नेता थे
नयी जिंदगी के प्रणेता थे
उनके कन्धों पर
युग का भार था
फिलहाल
बिल चुकाने वाले
किसी ध्रोता का
उन्हें इंतज़ार था
उदयभान मिश्र
उनका मन रेस्तरां के संगीत में नहीं था
उनका मन किसी बातचीत में नहीं था
वे अपनी जेबों में भर भर कर
लाये थे गुब्बारे
उन्हें चुपके से फुलाते थे
और हवा में उड़ाते थे
वे संख्या नें चार थे
हर चीज पर
उनके अपने विचार थे
वे दार्शनिक थे
नेता थे
नयी जिंदगी के प्रणेता थे
उनके कन्धों पर
युग का भार था
फिलहाल
बिल चुकाने वाले
किसी ध्रोता का
उन्हें इंतज़ार था
उदयभान मिश्र
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