Monday 6 May 2013

प्प्ज्य पिता जी का आशीर्वाद

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मुझे पिता जी की  वे हंसती ऑंखें  आज भी  याद हैं जिन आँखों  ने मुझे  गोरखपुर  के लिए  प्रस्थान  करते समय विदायी  दी थी . मुझे उस समय पता  नहीं था कि पिता जी के साथ इस पृथ्वी पर मेरी यह अंतिम भेंट और अंतिम बातचीत  थी . शायद  उन्हें इस बात  का अहसास  था , इसीलिये  उस दिन अपने भीतर  का सारा प्रेम  और आशीर्वाद  निचोड़  कर  उन्होंने अपनी हंसती आँखों  से मुझ पर उड़ेल दिया था .:
                               -----------मेरी आत्मकथा : : कहानी  सिर्फ  मेरी ही नहीं से :   

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