Saturday, 18 February 2012
Udai Bhan Mishra ka Prishtha: POEM OF UDAIBHAN MISHRA
Udai Bhan Mishra ka Prishtha: POEM OF UDAIBHAN MISHRA: दर्पण ------------ दर्पण दर्पण को खा रहे हैं लोग खुद से घबरा रहे हैं .................... उदयभान मिश्र
POEM OF UDAIBHAN MISHRA
दर्पण
------------
दर्पण दर्पण को
खा रहे हैं
लोग
खुद से
घबरा रहे हैं
....................उदयभान मिश्र
Wednesday, 8 February 2012
diary dated08-02-2012
आज गोरखपुर में मौसम का मिजाज़ सहसा बदल गया . मूसलाधार पानी और ठण्ड . इसी नौसम में जाने माने गीतकार गिरधर करुण के साथ शहर में निकला - हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि श्री केदार नाथ सिंह से मिलाने के लिए . वे दिल्ली से आये हैं और देवरिया जाते हुए आज इस शहर में हैं .उनके साथ करीब दो घंटे रहा . इस बीच उन्होंने हमें तनिक भी एहाशास नहीं होने दिया कि हम एक राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध वरिष्ठ कवि और साहित्यकार के साथ बातें कर रहें हैं . वे पूर्वांचल की माटी के सपूत हैं यहाँ के गावं के एक साधारण आदमी की तरह वे बातें करते रहे . लोग मिलने पर अपनी महिमा का बखान करने लगते हैं . इसके विपरीत उन्होंने अपने बारे में एक शब्द भी नहीं कहा , भोजपुरी में बातें करते रहे उन्हें याद करते हुए मैं घर आया
Monday, 6 February 2012
Udai Bhan Mishra ka Prishtha: POEM OF UDAIBHAN MISHRA
Udai Bhan Mishra ka Prishtha: POEM OF UDAIBHAN MISHRA: एक क्रिकेट मैच को देखते हुए --------------- मैं जानता था कि वे हार रहे थे मैं निश्चिन्त हो कर अपने बाकी सारे कामो...
POEM OF UDAIBHAN MISHRA
एक क्रिकेट मैच को देखते हुए
---------------
मैं जानता था कि
वे हार रहे थे
मैं निश्चिन्त हो कर
अपने बाकी सारे
कामों को
निपटा सकता था
मगर
उन्हें हारते हुए
देखने के सुख से
वंचित होना
नहीं चाहता था
और
टेलीविजन स्क्रीन पर
आँखें गडाए
हर गेंद की
करामात
देखता रहा
सब कुछ
ताक पर रख कर
वे जानते थे कि
वे हार रहे हैं
फिर भी वे
हर गेंद पर
जूझते रहे
अपनी सारी
ताकत को
झोंकते हुए
क्यों कि वे
मानते थे
कि
हार मानना ही
मृत्यु है
...............उदयभान मिश्र
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