Friday, 21 June 2013

poem of udainhan mishra

 तिनके जुटाने  मे
व्यस्त थी गौरैया
खूटे पर
रम्भाती थी  गैया
सहसा तभी
डूब गयी
तैरती नैया

धरती माता
चीख उठी
हा  दैया

हा मैया

Friday, 14 June 2013

               एक प्रेमिका के नाम 
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हजार हाजार चेहरों  के बीच 
एक चेहरा 

लंबा होता फैल  रहा है 
 मेरे आगे
जिस पर मैं दौड़ रहा हूँ
बेतहाशा
नंगे पावों
लहू - लुहान

हजार हजार चेहरों की 
भीड़ में  
-----------उदयभान मिश्र