Sunday, 24 February 2013
Udai Bhan Mishra ka Prishtha: my likings
Udai Bhan Mishra ka Prishtha: my likings: रामदरश मिश्र हमारे समय के एक महत्वपूर्ण कवि और लेखक हैं . मेरे प्रिय कवि हैं . आज उनकी एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ हाथ ...
my likings
रामदरश मिश्र हमारे समय के एक महत्वपूर्ण कवि और लेखक हैं . मेरे प्रिय कवि हैं . आज उनकी एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ
हाथ
-----------
इस हाथ से मैंने
आमजनों पर कविता लिखी
दंगे पर कहानी
आरक्षण पर लेख लिखा
अयोध्या प्रसंग पर टिप्पणी
आतंकवाद के विरुद्ध हस्ताक्छ्र्र - अभियान चलाया
और कनाटप्लेस में मानव श्रृंखला बनाई
सम्प्रदायवाद के विरोध में
लेकिन तुम कहाँ छिपे रहे भगोड़े
इस जलते समय में
वह चुप रहा
और शायद मेरी चिकनी हथेलियाँ देखता रहा
फिर धीर धीरे अपने दोनों हाथ फैला दिए
वे झुलसे हुवे थे
वह बोला -
मैंने एक जलते हुवे मकान में से
एक बच्चे को बचाया था
फिर अस्पताल में पडा रहा
----------------------------------------रामदरश मिश्र
हाथ
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इस हाथ से मैंने
आमजनों पर कविता लिखी
दंगे पर कहानी
आरक्षण पर लेख लिखा
अयोध्या प्रसंग पर टिप्पणी
आतंकवाद के विरुद्ध हस्ताक्छ्र्र - अभियान चलाया
और कनाटप्लेस में मानव श्रृंखला बनाई
सम्प्रदायवाद के विरोध में
लेकिन तुम कहाँ छिपे रहे भगोड़े
इस जलते समय में
वह चुप रहा
और शायद मेरी चिकनी हथेलियाँ देखता रहा
फिर धीर धीरे अपने दोनों हाथ फैला दिए
वे झुलसे हुवे थे
वह बोला -
मैंने एक जलते हुवे मकान में से
एक बच्चे को बचाया था
फिर अस्पताल में पडा रहा
----------------------------------------रामदरश मिश्र
Thursday, 31 January 2013
diary of udaibhan mishra
आज घर में रहा .कहीं बाहर नहीं गया. लिखने और प्रकाशन के बारे में लगातार सोचता रहा. सोचने से कुछ नहीं होता ,प्रयत्न करना होगा . कल्पना बुरी चीज़ नहीं है लिन्तु उसे कर्म में बदलना जरूरी होता है .कविता में और बहुत कुछ कहानी, निबंध में कल्पना की अहम् भूमिका होती है किन्तु वहाँ भी अनुभूति की गहनता , तथ्यों से साक्षात्कार और शोध की जरूरत होती है
जीवन में मुझे आज तक जो कुछ भी यश मान सम्मान मिला है वह अपने आप मिला है . आज जब मैं पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो मुझे दिखाई दे रहा है कि कि
सी के लिए मैंने कोई प्रयत्न नहीं किया है चीज़े अपने आप मेरी गोद में गिरती गई हैं . अगर मैंने किसी चीज़ के लिए जोड़ तोड़ की है या प्रयत्न किया है तो वह
---
चीज़ मुझ से दूर भागती गई है .
जीवन में मुझे आज तक जो कुछ भी यश मान सम्मान मिला है वह अपने आप मिला है . आज जब मैं पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो मुझे दिखाई दे रहा है कि कि
सी के लिए मैंने कोई प्रयत्न नहीं किया है चीज़े अपने आप मेरी गोद में गिरती गई हैं . अगर मैंने किसी चीज़ के लिए जोड़ तोड़ की है या प्रयत्न किया है तो वह
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चीज़ मुझ से दूर भागती गई है .
Sunday, 27 January 2013
diary of uraibhan mishra
ठंढ का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है . रचना सृजन का भी एक समय होता है . जरूरी नही कि हर समय लिखा ही जाय साहित्य का जगत बहुत क्रूर होता है . रचनाओ का पहाड़ खडा करने वाले लेखक को साहित्य देवता पल भर में धूल और की तरह हवा में उड़ा कर फेंक देते हैं और एकाध रचना के लेखक को अपने मुकुट में लगा कर सदा सदा के लिए महत्वपूर्ण बना देते हैं. मात्र एक कहानी लिख कर ही कोई लेखक साहित्य में अपना स्थान बना लेता है और कोई पोथा का पोथा लिख कर भी कहीं स्थान नही बना पाता है .इधर दो एक महीनो से मैं कुछ नहीं लिख रहा हूँ क्यों ? मैं खुद नही जानता
Friday, 25 January 2013
Udai Bhan Mishra ka Prishtha: diary of udaibhab mishra
Udai Bhan Mishra ka Prishtha: diary of udaibhab mishra: कामाख्या में पञ्च मकार से महामाया की अर्चना होती है .पञ्च मकार अर्थात मीन, मदिरा, मांस , मुद्रा और मैथुन . देवी की इस आराधना पद्धति क...
diary of udaibhab mishra
कामाख्या में पञ्च मकार से महामाया की अर्चना होती है .पञ्च मकार अर्थात मीन, मदिरा, मांस , मुद्रा और मैथुन . देवी की इस आराधना पद्धति को दार्शनिकों और साधकों ने वाम मार्ग कह कर पुकारा है .इसके विपरीत वैष्णो देवी हैं जो भैरवनाथ को अपने भोज से इस लिए भगा देती हैं कि वह मांस और मदिरा की मांग करता है .इतना ही नहीं उसका सर काट कर दूर की पहाडी पर फेंक देती हैं .
प्रश्न है कि एक साधक जो कामाख्या जाता रहा है वह सहसा वैष्णोदेवी की ओर कैसे आकर्षित हो गया वहाँ जाने के लिए क्यों बेचैन है . यह क्या है ? महामाया का खेल .एक ही महा शक्ति के विभिन्न रूप .महा सरस्वती , वीणा बजातीं तो महा लक्ष्मी कमल पुष्पों की सुगंधि विखेरती तो महा काली नर मुंडों की माला पहने भय की अनुभूति करातीं . इन विभिन्न रूपों में एक तत्व समान है कि सभी मानव का कल्याण ही करती हैं
प्रश्न है कि एक साधक जो कामाख्या जाता रहा है वह सहसा वैष्णोदेवी की ओर कैसे आकर्षित हो गया वहाँ जाने के लिए क्यों बेचैन है . यह क्या है ? महामाया का खेल .एक ही महा शक्ति के विभिन्न रूप .महा सरस्वती , वीणा बजातीं तो महा लक्ष्मी कमल पुष्पों की सुगंधि विखेरती तो महा काली नर मुंडों की माला पहने भय की अनुभूति करातीं . इन विभिन्न रूपों में एक तत्व समान है कि सभी मानव का कल्याण ही करती हैं
Thursday, 24 January 2013
DIARY OF UDAIBHAB NUSHRA
आज कल से कुछ ज्यादा ही ठंढ है .अख़बार में खबर है कि लोग सर्दी से मर रहे हैं. मुझे शहर में कुछ काम है किन्तु नहीं निकला . रजाई में घुसा हवा हूँ . कामाख्या वाम मार्ग का शक्तिपीठ है . मैं वहाँ जाता रहा हूँ , मगर वहाँ भी दक्षिण मार्गी हो कर ही रहा . शाकाहारी भोजन - मांस , मदिरा से दूर........अब वैष्णोदेवी की और मुडा हूँ पिछले साल वहाँ गया था , फिर जाने की इच्छा हो रही है . कहाँ कामाख्या कहाँ वैष्णोदेवी , ऊपर से दोनों दो ध्रुव लगते हैं मगर ऐसा है नहीं . दोनों ही एक ही परम शक्ति के अलग अलग रूप हैं . दोनों ही आत्मा का उद्धार करते हैं एक गरम एक शीतल . सूरज और चन्द्रमा , पिंगला और इडा इस शरीर में ही हैं . गंगा मैं नहाएये या जमुना में सभी का कार्य मॉल को शुद्ध करना है
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