कामतानाथ नहीं रहे -यह सुनना बहुत ही दुखद है . मेरा उनका लगभग पचास वर्षो का साथ था . हम १९६४ में दिल्ली में पहली बार मिले थे . वे सपरिवार दिल्ली भ्रमण पर आये थे . उस समय मेरी पत्नी जीवित थी .हम दोनो परिवार साथ साथ घूमते रहे . साथ में स्वर्गीय कथाकार रामनाथ शुक्ल भी थे . कामतानाथ का जाना जहाँ हिंदी जगत की एक अपूरणीय क्षति है वही मैंने अपना एक परम आत्मीय मित्र खो दिया है . कामतानाथ समसामयिक साहित्य जगत के संभवतः अकेले ऐसे लेखक थे ,जिनकी आत्मा गरीबों ,दलितों और संघर्ष करने वाली मानवीय चेतना में बसती थी . वे भीतर से भरे और तपे हुवे दृढ व्यक्तित्व थे - इसी लिए वे ट्रेड यूनियन नेता के रूप में अपनी प्रिय और उदार छवि प्रतिष्ठित कर सके थे . . अपनी विनम्र, शांत और सारगर्भित स्वभाव के कारण वे हर मिलने वाले को अपनी और आकर्षित कर लेते थे . मोहन राकेश, निर्मल वर्मा ,मार्कंडेय कमलेश्वर ,राजेंद्र यादव सभी के बीच से उन्होंने अपनी एक मौलिक राह बनायी थी . मुझे याद है जब उनका उपन्यास 'काल कथा' प्रकाशित हुवा था पूरे हिंदी जगत में हलचल मच गया था . साहित्य और समाज की हर धड़कन को अपनी धड़कन बना लेने वाले अमर कथाकार कामतानाथ को मेरा शत शत प्रणाम . |
Monday, 10 December 2012
KAAMTANATH releasing ' kahani sirf meri hi nahin ' an autobiography of UDAIBHAAN MISHRA
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