मुझे पिता जी की वे हंसती ऑंखें आज भी याद हैं जिन आँखों ने मुझे गोरखपुर के लिए प्रस्थान करते समय विदायी दी थी . मुझे उस समय पता नहीं था कि पिता जी के साथ इस पृथ्वी पर मेरी यह अंतिम भेंट और अंतिम बातचीत थी . शायद उन्हें इस बात का अहसास था , इसीलिये उस दिन अपने भीतर का सारा प्रेम और आशीर्वाद निचोड़ कर उन्होंने अपनी हंसती आँखों से मुझ पर उड़ेल दिया था .:
-----------मेरी आत्मकथा : : कहानी सिर्फ मेरी ही नहीं से :